The Truth About Raul Vinci a.k.a Rahul Gandhi

Dr. Subramanian Swamy reveals the truth about Raul Vinci a.k.a Rahul Gandhi and Antonia Maino a.k.a Sonia Gandhi.


BTW, these so called Gandhis have NO relationship with the father of the nation, Mahatma Gandhi.

21 Comments

  1. Krishna Marath said,

    April 7, 2009 at 2:00 am

    This should be spread across the country. This truth should come out!
    Jai Hind!

  2. Sonia Danthy said,

    April 14, 2009 at 12:03 pm

    This was astonishing ! Atleast BJP is lesser of the two devils – I will never vote for Congress … Vande Mataram !!!

    • Sastha said,

      May 25, 2011 at 6:33 pm

      Yes I agree with your points

      • gomzy said,

        June 10, 2011 at 8:06 pm

        wow it is eye opening

  3. abhijeet said,

    May 19, 2009 at 8:00 am

    if you are true indian then for what you are all waiting.

  4. Bihar Kesari said,

    April 23, 2010 at 2:42 pm

    We Indians are considered blind by the whole world because of the ease these pseudo Gandhis can screw us and we not even thank them but also allow them to rule us so that they can screw us more. I am always for BJP. Atleast that’s an Indian Ideology party. We don’t need no Gandhis in our country. We need BJP. Long live India
    God Bless BJP.

  5. edward said,

    October 27, 2010 at 4:54 am

    this guy is a blody show off!! a typical hypocrite!! all he can do is talk talk n talk.. yea a few of the things could be true but all people seein this should also remember that this man on screen is the same man who joined hands with sonia gandhi to bring down the BJP in 1998. where were his principles those days. for a common man like me whichever person rules doesnt matter but yea i do look into the way they work and contribute to the growth of the nation. thats what should matter the most and not these silly matters that this esteemed personality is talking here just to gain name and fame and may be a few votes in the next election if he is lucky!!

  6. sid said,

    December 15, 2010 at 6:16 pm

    I think it doesn’t matters too much to me what ever a person’s past is, if he’s devoted to serve the people good. Having a ‘All-Indian’ leader doesn’t guarantees a better future.

    After all Mother Teresa wasn’t Indian born, she looked into the needs of poor and helped them.

    Also, if we look at our Father of the Nation, he went to S.A. and helped those in need there.

    Comparing at the state of India before and after Independence, we know how much do Indian Politicians sucks and how does every good planning becomes a flop because of corruption at all levels.

    Every movie you see, if it has a Politician in it, then he’s sure gonna to be a bad character. Thats reflects what we think about politicians.

    So, all I’ll keep in mind voting next time is, to vote for a better human, with optimistic vision and I’m not saying to vote for congress or BJP, but keep your heads open and be sensible.

    Don’t prejudice.

  7. Vibhu said,

    February 5, 2011 at 6:01 pm

    Hi

    This is very astonishing. At the same time this information needs to be spread to every Indian. We can use tools like social media to spread the information to common people.

    Best
    Vibhu

  8. VALVE said,

    February 15, 2011 at 5:09 pm

    Spread this as much as possible.Don’t talk just spread it ,shareit on facebook,tweet it on twitter and mail it to all friends you have : )

  9. Niel said,

    March 23, 2011 at 5:30 am

    satyameva jayate.

  10. Rita said,

    May 15, 2011 at 2:17 am

    Why is this not discussed by our print and electronic media? It is shocking to know that there is such a complete blank silence in our media.

  11. Ganesh Paisa said,

    June 9, 2011 at 1:27 pm

    Everyone should know about it….

  12. RAMESHWAR ARYA said,

    June 28, 2011 at 4:34 am

    VANDEMATRAM EK HONE KA SAMAY AA GAYA HAI BHAIYON PLZ IS PAGE PE SABHI DESHBHAKTON KO LIYAO AUR BHRASHTACHAR KE KHILAAF EK MUNCH BANAO HUM KYON BANTE HUE HAIN BANA DALO TEHREER CHOWK JANTAR MANTAR KO जंतर मंतर बनेगा तहरीर चोक जय हिंद सभी इस लिंक को पसन्द करें और इस आंदोलन का हिस्सा बने और भ्रष्ट व्यवस्था से छुटकारा पायें जैसे मिस्र ने पाया है भारत माता की जय वन्देमातरम, जय-हिंद https://www.facebook.com/pages/India-Tahreer-Chowk-Jantar-Mantar/171450686253124

  13. YADVENDRA SINGH said,

    June 28, 2011 at 7:10 am

    inki maa ki ankh sonia,rahul -TO THE DEATH.

  14. August 22, 2011 at 10:03 pm

    The Hidden Truth.

  15. Sanjoo said,

    August 23, 2011 at 7:00 am

    जन गण मन की कहानी ………………………….
    vv
    सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल
    विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के
    लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से
    हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर
    दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने
    अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये।
    इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर
    दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही
    होगा।

    उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके
    परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके
    बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता
    डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया
    कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी
    अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा
    उसके बोल है “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे
    के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ
    समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा
    गया था।

    इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की
    जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे
    अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो !
    जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात,
    मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा,
    बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश
    है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का
    आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य
    विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ”

    जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो
    इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।
    क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं
    आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी
    अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज
    तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया
    कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड
    बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल
    पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।

    उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला
    किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर
    दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके
    इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना
    ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो
    लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो
    नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।
    जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक
    रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

    रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला
    कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा
    क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब
    उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक
    कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत
    जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब
    जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और
    नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ
    भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919
    के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।

    रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और
    ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद
    की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के
    द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा
    नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने
    लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप
    तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता
    दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को
    सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा
    क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।

    1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई।
    जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल
    नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि
    स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition
    Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर
    सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण
    लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस
    के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।

    गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे
    मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं
    स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से
    इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के
    लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम
    दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना,
    उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे।
    वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को
    चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल
    वाले “वन्दे मातरम”।

    नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था
    तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि
    मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती
    (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर
    विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली
    जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी
    देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे
    उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को
    वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया
    तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली।
    संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा
    लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।

    बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था
    पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के
    दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से
    मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का
    फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन
    मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष
    में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने
    तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा
    ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।

    नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन
    मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस
    मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु
    जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर
    इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी
    प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को
    राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम
    नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों
    के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब
    कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह
    दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम
    इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।

    बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग
    रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो
    99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई
    कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई
    देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि
    इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।

    तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है
    कि आपको क्या गाना है ?

    इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद्। और
    अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों
    तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये अंग्रेजी छोड़ कर।

    जय हिंद |

  16. Anup said,

    September 14, 2011 at 10:17 pm

    Raul baba don’t run business with the name of politics..and u should ashame to be an indian bcause in india we respect education and u…???hope u understand.

  17. BullFire said,

    February 6, 2012 at 4:34 pm

    most of the dumb peple commenting here are less educated than rahul gandhi.

  18. February 22, 2012 at 7:33 pm

    RAUL (RAHUL) VINCI (JHOOTHA GANDHI) IS A FRAUD & EARLIER INDIA GETS RID OF THIS MIXED/ HYBRID FAMILY, BETTER IT IS…..


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